Saturday, 3 September 2016

आप हमारे थे ही कब

आप हमारे थे ही कब जो बैगाने हो गये
एक जरा सी बात थी क्या फसाने हो गये

क्या तुम्हे इल्जाम दें क्या सुनाए हाल ए दिल
अब होगा कोई नया हम पुराने हो गये

जो कभी हसकर गुजरे थे पास से मेरे
आज उनके दिल में भी हजारों फ़साने हो गये

जिन्दगी ने इस तरह से ढाए है सितम मुझ पर
जब पड़ी अब्बा कि मार हम सयाने हो गये

अज़िम तुम्हारी याद में मजनु बन सका कभी
मगर लैला मजनु के किस्से कब के पुराने हो गये

अज़िम शेख़ "हमदर्द"
मो.9673076786 लातुर

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