1. अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे
अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगेअब हम किसी शख़्स की परवाह न करेंगेकुछ लोग कई लफ़्ज़ ग़लत बोल रहे हैंइसलाह मगर हम भी अब इसलाह न करेंगेकमगोई के एक वस्फ़-ए-हिमाक़त है बहर तोकमगोई को अपनाएँगे चहका न करेंगेअब सहल पसंदी को बनाएँगे वातिराता देर किसी बाब में सोचा न करेंगेग़ुस्सा भी है तहज़ीब-ए-तआल्लुक़ का तलबगारहम चुप हैं भरे बैठे हैं गुस्सा न करेंगेकल रात बहुत ग़ौर किया है सो हम ए "जॉन"तय कर के उठे हैं के तमन्ना न करेंगे
2. अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़
अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़
वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
भला मैं पूछता उससे तो कैसे
मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?
साल-हा-साल और एक लम्हा
कोई भी तो न इनमें बल आया
खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी
खुद ही लड़का सा मैं निकल आया
दौर-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं
अहद-ए-वाबस्तगी को भूल गया
यानी तुम वो हो, वाकई, हद है
मैं तो सचमुच सभी को भूल गया
रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निबाहनी होती
मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती
दिल में जिनका निशान भी न रहा
क्यूं न चेहरों पे अब वो रंग खिलें
अब तो खाली है रूह, जज़्बों से
अब भी क्या हम तपाक से न मिलें
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं
आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं
3. अब जुनू कब किसी के बस में है
अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है
हाल उस सैद का सुनाईए क्या
जिसका सैयाद ख़ुद क़फ़स में है
क्या है गर ज़िन्दगी का बस न चला
ज़िन्दगी कब किसी के बस में है
ग़ैर से रहियो तू ज़रा होशियार
वो तेरे जिस्म की हवस में है
बाशिकस्ता बड़ा हुआ हूँ मगर
दिल किसी नग़्मा-ए-जरस में है
'जॉन' हम सबकी दस्त-रस में है
वो भला किसकी दस्त-रस में है
4. आगे हँसते खूनी परचम
आगे असबे खूनी चादर और खूनी परचम निकले
जैसे निकला अपना जनाज़ा ऐसे जनाज़े कम निकले
दौर अपनी खुश-दर्दी रात बहुत ही याद आया
अब जो किताबे शौक निकाली सारे वरक बरहम निकले
है ज़राज़ी इस किस्से की, इस किस्से को खतम करो
क्या तुम निकले अपने घर से, अपने घर से हम निकले
मेरे कातिल, मेरे मसिहा, मेरी तरहा लासनी है
हाथो मे तो खंजर चमके, जेबों से मरहम निकले
'जॉन' शहादतजादा हूँ मैं और खूनी दिल निकला हूँ
मेरा जूनू उसके कूचे से कैसे बेमातम निकले
5. उम्र गुज़रेगी इंतहान में क्या
उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या?
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या?
मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या?
बोलते क्यो नहीं मेरे अपने
आबले पड़ गये ज़बान में क्या?
मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या?
अपनी महरूमिया छुपाते है
हम गरीबो की आन-बान में क्या?
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या?
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या?
है नसीम-ए-बहार गर्दालूद
खाक उड़ती है उस मकान में क्या
ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शक्स था जहान में क्या?
6. एक ही मुश्दा सुभो लाती है
एक ही मुश्दा सुभो लाती है
ज़हन में धूप फैल जाती है
सोचता हूँ के तेरी याद आखिर
अब किसे रात भर जगाती है
फर्श पर कागज़ो से फिरते है
मेज़ पर गर्द जमती जाती है
मैं भी इज़न-ए-नवागरी चाहूँ
बेदिली भी तो नब्ज़ हिलाती है
आप अपने से हम सुखन रहना
हमनशी सांस फूल जाती है
आज एक बात तो बताओ मुझे
ज़िन्दगी ख्वाब क्यो दिखाती है
क्या सितम है कि अब तेरी सूरत
गौर करने पर याद आती है
कौन इस घर की देख भाल करे
रोज़ एक चीज़ टूट जाती है
7. एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
एक हुनर है जो कर गया हूँ मैंसब के दिल से उतर गया हूँ मैंकैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँसुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैंक्या बताऊँ के मर नहीं पाताजीते जी जब से मर गया हूँ मैंअब है बस अपना सामना दरपेशहर किसी से गुज़र गया हूँ मैंवो ही नाज़-ओ-अदा,
वो ही ग़मज़ेसर-ब-सर आप पर गया हूँ मैंअजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने काके यहाँ सब के सर गया हूँ मैंकभी खुद तक पहुँच नहीं पायाजब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैंतुम से जानां मिला हूँ जिस दिन सेबे-तरह,
खुद से डर गया हूँ मैंकू–
ए–
जानां में सोग बरपा हैके अचानक,
सुधर गया हूँ मैं
8. कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे|
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे|
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा,
यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे|
बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो,
दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे|
मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे,
यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे|
यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की,
वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे|
9. किसी लिबास की खुशबू
किसी लिबास की ख़ुशबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है
तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती है
रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निभानी होती
मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती
दिल में जिनका कोई निशाँ न रहा
क्यों न चेहरो पे वो रंग खिले
अब तो ख़ाली है रूह जज़्बों से
अब भी क्या तबाज़ से न मिले
10. कोई हालत नहीं ये हालत है
कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोभना सूरत है
अन्जुमन में ये मेरी खामोशी
गुर्दबारी नहीं है वहशत है
तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बस गनिमत है
ख्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़ीयत बड़ी अज़ीयत है
लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
या मेरा गम ही मेरी फुरसत है
तंज़ पैरा-या-ए-तबस्सुम में
इस तक्ल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है
हमने देखा तो हमने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है
वार करने को जाँनिसार आए
ये तो इसार है इनायत है
गर्म-जोशी और इस कदर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है
अब निकल आओ अपने अन्दर से
घर में सामान की ज़रूरत है
आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पाँव तक बदन सलामत है
11. क्या तकल्लुफ करे ये कहने में
उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहाँ टालने से टलते हैं
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ यारों
और जिस तरह बहलते हैं
वोह है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं
है उसे दूर का सफ़र दरपेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं
है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं
12. ख़ामोशी कह रही है कान में क्या
ख़ामोशी कह रही है, कान में क्या आ रहा है मेरे, गुमान में क्या
अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं यही होता है, खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं, मेरे हक़ में आबले[1] पड़ गये, ज़बान में क्या
मेरी हर बात, बे-असर ही रही नुक़्स है कुछ, मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये, पूछना है मुझे अब भी हूँ मैं तेरी, अमान में क्या
शाम ही से, दुकान-ए-दीद है बंद नहीं नुकसान तक, दुकान में क्या
यूं जो तकता है, आसमान को तू कोई रहता है, आसमान में क्या
ये मुझे चैन, क्यूँ नहीं पड़ता इक ही शख़्स था, जहान में क्या
शब्दार्थ:
- ↑ छाले
13. ख़ुद से हम इक नफ़स हिले भी कहाँ
ख़ुद से हम इक नफ़स हिले भी कहाँ|
उस को ढूँढें तो वो मिले भी कहाँ|
ख़ेमा-ख़ेमा गुज़ार ले ये शब,
सुबह-दम ये क़ाफिले भी कहाँ|
अब त'मुल न कर दिल-ए- ख़ुदकाम,
रूठ ले फिर ये सिलसिले भी कहाँ|
आओ आपस में कुछ गिले कर लें,
वर्ना यूँ है के फिर गिले भी कहाँ|
ख़ुश हो सीने की इन ख़राशों पर,
फिर तनफ़्फ़ुस के ये सिले भी कहाँ|
14. चार सू मेहरबाँ है चौराहा
चार सू मेहरबाँ है चौराहाअजनबी शहर अजनबी बाज़ारमेरी तहवील में हैं समेटे चारकोई रास्ता कहीं तो जाता हैचार सू मेहरबाँ है चौराहा
15. जब मैं तुम्हें निशात-ए-मुहब्बत न दे सका
जब मैं तुम्हें निशात-ए-मुहब्बत न दे सका|
ग़म में कभी सुकून-ए-रफ़ाक़त न दे सका|
जब मेरे सारे चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैं|
जब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैं|
फिर मुझे चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं|
तन्हा कराहाने का तुम्हें कोई हक़ नहीं|
16. जी ही जी में
1.
जी ही जी में वो जल रही होगी
चाँदनी में टहल रहीं होगी
चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी
सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी
चढ़ते-चढ़ते किसी पहाड़ी पर
अब तो करवट बदल रही होगी
नील को झील नाक तक पहने
सन्दली जिस्म मल रही होगी
2.
गाहे-गाहे बस अब तही हो क्या
तुम से मिल कर बहुत खुशी हो क्या
मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को अक्सर भुला चुकी हो क्या
याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हें
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या
बस मुझे यूँ ही एक ख़याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या
अब मेरी कोई ज़िन्दगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िन्दगी हो क्या
क्या कहा इश्क जाबेदानी है
आखरी बार मिल रही हो क्या?
है फज़ा याँ की सोई-सोई सी
तुम बहुत तेज़ रोशनी हो क्या
मेरे सब तंज़ बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या?
दिल में अब सोज़े-इंतज़ार नहीं
शम्मे उम्मीद बुझ गई हो क्या?
17. तुम जिस ज़मीन पर हो मैं
तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उस का ख़ुदा नहीं
बस सर- ब-सर अज़ीयत-ओ-आज़ार ही रहो
बेज़ार हो गई हो बहुत ज़िन्दगी से तुम
जब बस में कुछ नहीं है तो बेज़ार ही रहो
तुम को यहाँ के साया-ए-परतौ से क्या ग़रज़
तुम अपने हक़ में बीच की दीवार ही रहो
मैं इब्तदा-ए-इश्क़ में बेमहर ही रहा
तुम इन्तहा-ए-इश्क़ का मियार ही रहो
तुम ख़ून थूकती हो ये सुन कर ख़ुशी हुई
इस रंग इस अदा में भी पुरकार ही रहो
मैंने ये कब कहा था के मुहब्बत में है नजात
मैंने ये कब कहा था के वफ़दार ही रहो
अपनी मता-ए-नाज़ लुटा कर मेरे लिये
बाज़ार-ए-इल्तफ़ात में नादार ही रहो
18. तुम हकीकत नहीं हो हसरत हो
तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो
तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
औए इतने ही बेमुरव्वत हो
तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो
है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो
किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो
किसलिए देखते हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो
दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो
19. तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है
तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है
उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास
जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है
हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है
हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है
हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़ ए रक़बत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है
हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है
इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की खुश्बू आई है
एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
20. दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं किया
दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं कियाख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं कियाकैसे कहें के तुझ को भी हमसे है वास्ता कोईतूने तो हमसे आज तक कोई गिला नहीं कियातू भी किसी के बाब में अहद-शिकन हो ग़ालिबनमैं ने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं कियाजो भी हो तुम पे मौतरिज़ उस को यही जवाब दोआप बहुत शरीफ़ हैं आप ने क्या नहीं कियाजिस को भी शेख़-ओ-शाह ने हुक्म-ए-ख़ुदा दिया क़रारहमने नहीं किया वो काम हाँ बा-ख़ुदा नहीं कियानिस्बत-ए-इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़उस ने तो कार-ए-जेहन भी बे-उलामा नहीं किया
21. बेदिली क्या यूँ ही दिल गुज़र
बेदिली! क्या यूँ ही दिन गुजर जायेंगे
सिर्फ़ ज़िन्दा रहे हम तो मर जायेंगे
ये खराब आतियाने, खिरद बाख्ता
सुबह होते ही सब काम पर जायेंगे
कितने दिलकश हो तुम कितना दिलजूँ हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएंगे
22. महक उठा है आंगन इस खबर से
महक उठा है आँगन इस ख़बर सेवो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र सेजुदाई ने उसे देखा सर-ए-बामदरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसेमैं इस दीवार पर चढ़ तो गया थाउतारे कौन अब दीवार पर सेगिला है एक गली से शहर-ए-दिल कीमैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर सेउसे देखे ज़माने भर का ये चाँदहमारी चाँदनी छाए तो तरसेमेरे मानन गुज़रा कर मेरी जानकभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से
23. मेरी अक्ल-ओ-होश की
मेरी अक्ल-ओ-होश की सब हालते
तुमने सांचे में ढाल दी
कर लिया था मैंने अहदे कर के इश्क
तुमने बाहे फिर गले में डाल दी
यू तो अपने कसदाने दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम है
ये तेरे खत तेरी खुशबू
ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल
मताए जा है तेरे
कसम की तरह
गुज़रता साल मैने
इनहे मैने गिन के रखा था
किसी गरीब की जोड़ी हुई
रकम की तरह
है मुहब्ब्त हयात की नज़र
वरना कुछ हज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इज़ाज़त है एक बात कहू
मगर खैर कोई बात नहीं
24. यह गम क्या दिल की आदत है? नहीं तो
यह गम क्या दिल की आदत है?
नहीं तोकिसी से कुछ शिकायत है?
नहीं तोहै वो इक ख्वाब-ए-बे ताबीर इसकोभुला देने की नीयत है?
नहीं तोकिसी के बिन किसी की याद के बिनजिए जाने की हिम्मत है ?
नहीं तोकिसी सूरत भी दिल लगता नहीं?
हाँतू कुछ दिन से यह हालत हैं?
नहीं तोतेरे इस हाल पर हैं सब को हैरततुझे भी इस पर हैरत है?
नहीं तोवो दरवेशी जो तज कर आ गया.....तूयह दौलत उस की क़ीमत है?
नहीं तोहुआ जो कुछ यही मक़्सूम था क्यायही सारी हकायत है ?
नहीं तोअज़ीयत नाक उम्मीदों से तुझकोअमन पाने की हसरत है?
नहीं तो
25. रूह प्यासी कहाँ से आती है
रूह प्यासी कहाँ से आती हैये उदासी कहाँ से आती हैदिल है शब दो का तो ऐ उम्मीदतू निदासी कहाँ से आती हैशौक में ऐशे वत्ल के हन्गामनाशिफासी कहाँ से आती हैएक ज़िन्दान-ए-बेदिली और शामये सबासी कहाँ से आती हैतू है पहलू में फिर तेरी खुशबूहोके बासी कहाँ से आती है
26. लौ-ए-दिल जला दूँ क्या
लौ-ए-दिल जला दूँ क्या
कहकशाँ लुटा दू क्या
है सवाल इतना ही
इनका जो भी मुद्दा है
मैं उसे गवाँ दू क्या
जो भी हर्फ है इनका
नक्श-ए-जाँ ए जाना ना
नक्श-ए-जाँ मिटा दूँ क्या
मुझ को लिख के ख़त जानम
अपने ध्यान में शायद
ख़्वाब-ख़्वाब जज़्बों के
ख़्वाब-ख़्वाब लम्हों में
यूँ ही बेख़याल आना
और ख़याल आने पर
मुझ से डर गई हो तुम
जुर्म के तस्सवुर में
गर ये ख़त लिखे तुमने
फिर तो मेरी राय में
जुर्म ही किये तुमने
जुर्म क्यों किये जाएँ
जुर्म हो तो
ख़त ही क्यों लिखे जाएँ
28. सर ये फोड़िए
सर येह फोड़िए अब नदामत में
नीन्द आने लगी है फुरकत में
हैं दलीलें तेरे खिलाफ मगर
सोचता हूँ तेरी हिमायत में
इश्क को दरम्यान ना लाओ के मैं
चीखता हूँ बदन की उसरत में
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में
वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में
वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में
मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ
खून थूका गया शरारत में
रूह ने इश्क का फरेब दिया
ज़िस्म को ज़िस्म की अदावत में
अब फकत आदतो की वर्जिश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में
ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद
क्या लिखा है हमारी किस्मत में
29. हम के ए दिल सुखन सरापा थे
हम के ए दिल सुखन सरापा थे
हम लबो पे नहीं रहे आबाद
जाने क्या वाकया हुआ
क्यू लोग अपने अन्दर नहीं रहे आबाद
शहर-ए-दिन मे अज्ब मुहल्ले थे
उनमें अक्सर नहीं रहे आबाद
30. हम तो जैसे यहाँ के थे ही नहीं
हम तो जैसे यहाँ के थे ही नहीं|
धूप थे सायबाँ के थे ही नहीं|
रास्ते कारवाँ के साथ रहे,
मर्हले कारवाँ के थे ही नहीं|
अब हमारा मकान किस का है,
हम तो अपने मकाँ के थे ही नहीं|
इन को आँधि में ही बिखरना था,
बाल-ओ-पर यहाँ के थे ही नहीं|
उस गली ने ये सुन के सब्र किया,
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं|
हो तेरी ख़ाक-ए-आस्ताँ पे सलाम,
हम तेरे आस्ताँ के थे ही नहीं|
31. हमारे शौक के आंसू दो
हमारे शौक के आंसू दो, खुशहाल होने तक
तुम्हारे आरज़ू केसो का सौदा हो चुका होगा
अब ये शोर-ए-हाव हूँ सुना है सारबानो ने
वो पागल काफिले की ज़िद में पीछे रह गया होगा
है निस-ए-शब वो दिवाना अभी तक घर नहीं आया
किसी से चन्दनी रातों का किस्सा छिड़ गया होगा
32. हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम,
हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं,
तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम,
मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं,
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो आज़ाब में,
और इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं,
33. हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई
एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यां फिर तेरी याद भी गई
सैने ख्याल-ए-यार में की ना बसर शब्-ए-फिराक
जबसे वो चांदना गया तबसे वो चांदनी गयी
उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक कबा भी सी गयी
उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी
उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब और खराब की गई
तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई
उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गयी
उसके पहलू से लग के चलते हैं / जॉन एलिया
उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं
मै उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलतें हैं
वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं
क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं
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और तो कुछ नहीं किया मैंने
अपनी हालत ख़राब कर ली हैं